Trip to Mumbai Memory of Childhood

बचपन की यादों मे मेरे द्वारा देखा गया मुंबई दर्शन जहां मैंने गते वे ऑफ इंडिया, एलीफेंटा की गुफा और मुंबई और सफर मे पटना मे दशन की उम्मेद लिए एक बच्चे की नजर से मुंबई दर्शन को दिकने का प्रयास कर रहा हूँ जो मेरी यादों मे है।

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2/6/20241 min read

साल था 2006 में फरक्का में पढ़ता था और वही रहता था सबसे पहले पढ़ाई का विचार इस समय आया था मैं वहां 2005 में गया था मेरे दादाजी कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे और कोलकाता में करीब 3 से 4 साल तक इलाज चलता रहा इलाज सफल न होने के कारण दादा जी को मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया और मेरे पिताजी दादा जी को लेकर मुंबई में टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में इलाज करवाने के लिए चले गए। सर वहां पर पिताजी दो से 3 महीने रहते थे फिर घर जाकर कुछ काम धाम देखा करते थे मैं फरक्का में रह रहा था और घर वाले और मैं भी मुंबई जाने की जिद किया करते थे पिताजी इसी बहाने में मेरी माता जी और पिताजी तीनों ही दादाजी के साथ मुंबई वहां उनका इलाज तो होता साथी हम भी मुंबई दर्शन कर लेते और उसे समय गांव में रहने के कारण शायद यह मेरे जीवन का बहुत बड़ा उपलब्धि होता l
हम सब ने मिलकर आखिरकार जनवरी या फरवरी के आसपास साल 2006 में मुंबई के लिए निकल पड़े फरक्का से हमारा ट्रेन पटना के लिए था रात को ट्रेन पकड़े और अगले दिन सुबह पटना में उतरी सुबह से दोपहर हमने स्टेशन में ही गुजर खाना पीना किया और जो भी वहां का अच्छा दृश्य था उसे देखने के लिए गए। मैंने पिताजी और मम्मी तीनों ने गोलघर और तारामंडल दोनों जगह समय बिताए बुढ़िया के बाल खाया और इसी तरह सुबह से दोपहर का समय बीत गया दादाजी बीमार थे इसलिए हमने उन्हें स्टेशन में विश्राम करने को कहा था फिर आकर हम सब में साथ मिलकर खाना खाया और दोपहर का समय हो चुका था अब मुंबई की ट्रेन पटना स्टेशन पर आ चुकी थी

train station at daytime
train station at daytime

ट्रेन पटना स्टेशन पर आ चुकी थी और अभी की तरह उसे समय ट्रेन किस प्लेटफार्म नंबर पर आएगी इस बात का पता नहीं होता था मैं बहुत छोटा था पिताजी ने मुझे चढ कर एक डब्बे में पीछे हट गए भीड़ बहुत ज्यादा थी और मैं उसे डब्बे में आगे बढ़ गया अब पिताजी मुझे खोजने लगे और ट्रेन भी निकल नहीं वाली थी एक दो मिनट में मैं उन्हें दिख गया फिर पिताजी ने फटकार लगाई और फिर हम सब डब्बे में बैठ गए मेरे फटकार लगाने पर दादाजी ने पिताजी को डांटा कि वह तो अभी बालक है उसे कहां पता होगा की किस डब्बे में चढ़ता है फिर हम सब बैठकर मुंबई के लिए निकल गए रास्ते में बहुत सारे स्टेशन आए हमने तरह-तरह का खाना खाया और खाना खाने के बाद मैं चुपके से जाकर ऊपर सो जाता था मेरा उम्र 5 वर्ष से ज्यादा हो चुका था लेकिन शायद से सभी के गांव में कह सकते हैं कि जब तक बच्चा 9 10 साल का नहीं हो जाता तब तक बच्चा 5 साल से छोटा ही रहता है ट जब भी चेक करने आता था तो मैं ट्रेन में छुपकर बैठ जाता था या लेट जाता था और कमल ओढ़ लेता था। तरह-तरह के पकवान खाए और न मिलने पर जिद भी उतने ही ज्यादा करने लगता था इसी तरह बातचीत और सफर का मजा लेते हुए हम लोग मुंबई यानी कि सपनों की नगरी में 2 दिन बाद पहुंच गए। सपनों का शहर मुंबई वहां एक रूम का बात हुआ जहां पर मैं पिताजी और मम्मी रहते और दादाजी को अस्पताल में दोबारा एडमिट कर दिया गया दादाजी का तो वहां इलाज चल ही रहा था इसके अलावा हम सब उन्हें भेंट करने जाते थे पिताजी ज्यादातर वहां रहते थे
कुछ कुछ दिन बाद हम लोग अलग-अलग जगह घूमने के लिए जाने लगे हमने इंडिया गेट दिखा वहां पर तरह-तरह का फोटो खिंचवाया, ताज होटल के सामने फोटो खिंचवाया आगे चलकर हमने और भी बहुत जगह एक्सप्लोर किया मेरी मां बताती है कि हमने साड़ी खोजने के लिए एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पैदल ही चले गए शहर से दूर हमें एक छोटी साड़ी की दुकान मिली जहां उन्होंने साड़ी खरीद कुछ दिन बाद हम जहाज पर बैठकर एलिफेंटा की गुफा देखने के लिए गए वहां हमने पुरानी ट्रेन देखी बहुत सारे बंदर और वहां में रहने वाले संप्रदाय को देखा तब उन्हें बहुत अच्छा स्वागत किया वहां में रिजॉर्ट भी था जहां हमने हल्का-फुल्का नाश्ता किया इसके बाद हम वापस से मुंबई में अपने रूम पहुंच गए फिर एक दिन हमने बस बुक करके वहां का म्यूजियम गए म्यूजियम जाकर वहां के पुराने चीजों को दिखा फेवी स्टिक में बनने वाला बैलून टेप रिकॉर्डर और जितने तरह की भी शौक बचपन में हो सकते हैं उन सबको किया

photo of India Gate
photo of India Gate

इसके अलावा हमने वहां अलग-अलग तरह के खाना खाए मुझे होटल में चिकन खाने का बहुत शौक था क्योंकि बचपन से हम जब भी होटल जाते थे तो वहां मछली या अंडा खाते थे पिताजी बार-बार करते रहे की चिकन ऑर्डर मत करो लेकिन बचपन का वह जिद्दी मां मुझे चिकन खाना ही है ऑर्डर तो कर दिए लेकिन अब चिकन खा नहीं पा रहे हैं क्योंकि वहां उसे बनाने का तरीका बहुत अलग था और मैं खाया ही नहीं अंत में पिताजी कोई खाना पड़ा और साथ ही जिस होटल में हम थे वहां ऐसे अलग-अलग इंसिडेंट होते रहे क्योंकि मैं एक हॉस्टल में रहने वाला बच्चा था मेरे अंदर अलग-अलग तरह के जिज्ञासा जागते थे जिन्हें मैं अतरंगी ढंग से करने लगा था इसके अलावा जितना हो सके हमने उसे एक्सप्लोरर किया और उसके बाद
जब हम वापस मुंबई के यात्रा से वापस आ रहे थे तो वहां पर जो मेरे साथ हुआ या फिर मेरे अनुभव की वह यात्रा मेरे लिए कैसी थी तो मैं इस बात पर कहता था कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो मैं आप सबको अमेरिका की यात्रा पर ले जाऊंगा ऐसा मैंने मेरे मम्मी पिताजी दोनों से वादा किया था कि आप लोग जितना इस यात्रा में मैं आप सबको अमेरिका में ले जाकर उससे ज्यादा आनंद भरे पल बिताने का महसूस करवा दूंगा यह एक अवसर भरा वादा लग सकता है। लेकिन उसे समय जो था वह था और ऐसे ही हम फिर जैसे गए थे उसी तरह वापस भी ट्रेन का मजा लेते हुए वापस भी आए और यह मेरे बचपन में और शायद अब तक की सबसे बड़ी यात्रा रही जो कि करीब महीने भर का था आपको कैसा लगा यदि अच्छा लगा तो हमें फॉलो करें